राष्ट्रसन्त प्रज्ञसागर
परम पूज्य राष्ट्रसंत परम्पराचार्य श्री 108 प्रज्ञसागर जी मुनिराज
परम पूज्य राष्ट्र संत परम्पराचार्य 108 प्रज्ञसागर जी मुनिराज जैन धर्म के महान दिगंबर जैन संत हैं, जो अपनी कठोर तपस्या, आध्यात्मिक साधना, तथा राष्ट्रहित एवं समाज कल्याण के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते हैं।
आचार्य श्री की अगुवाई में ही नई दिल्ली के द्वारका सेक्टर-10 में अत्यंत भव्य एवं दिव्य "श्री दिगम्बर जैन रत्नत्रय जिनमंदिर" (Shree Digambar Jain Ratnatray JinMandir Dwarka) का निर्माण कार्य सम्पन्न हुआ है। यह मंदिर न केवल वास्तुकला की दृष्टि से अनुपम है, बल्कि यह जैन धर्म के तीन रत्न — सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र — के आदर्शों को सजीव करता है।
इस मंदिर का निर्माण कार्य आचार्य श्री की तपस्या, संकल्प और श्रद्धालु समाज के सहयोग से संभव हो पाया है। यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक केंद्र है, जहाँ ध्यान, पूजा, स्वाध्याय और पर्व-उत्सवों का आयोजन होता है। यह क्षेत्र अब एक "आतिशय क्षेत्र" के रूप में भी प्रतिष्ठित हो चुका है, जहाँ कई श्रद्धालुओं ने चमत्कारी अनुभव भी किए हैं।
यह मंदिर भगवान महावीर अहिंसा भारती ट्रस्ट (Bhagwan Mahaveer Ahimsa Bharti Trust) के तत्वावधान में संचालित होता है।
स्थान: HAF Pocket A, Institutional Area, Sector 10, Dwarka, Delhi – 110075, NCT of Delhi
जन्म एवं प्रारंभिक जीवन
परम पूज्य आचार्य श्री का जन्म 14 नवंबर 1978 को मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले कुंभी सतधारा में हुआ। बचपन से ही वे धार्मिक प्रवृत्ति के थे और उनकी रुचि आध्यात्मिक साधना की ओर थी।
संन्यास गमन एवं दीक्षा
उन्होंने 1996 में गृहस्थ जीवन का त्याग कर संन्यास पथ अपनाया और वर्ष 1999 में परम पूज्य आचार्यश्री विराग जी मुनिराज से दिगंबर जैन मुनि दीक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने कठोर तपस्या और स्वाध्याय को अपना जीवन बना लिया। परम पूज्य श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज के आप अन्तेवासी पट्टशिष्य के रूप स्थापित हुए। उनसे आध्यात्मिक शिक्षाएं ग्रहण की। उन्हीं की असीम कृपा से पहले उपाध्याय, एलाचार्य और इसके बाद परम्पराचार्य का आचार्य पद प्राप्त किया। वर्तमान में आप सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक क्षेत्र अनेकों ऐसे कार्य कर रहे जो सभी के लिए आप आदर्श रूप है।
आपकी पहचान एक सच्चे और अच्छे राष्ट्रसन्त के रूप में होती है।
आध्यात्मिक योगदान
वे अहिंसा, शाकाहार, करुणा और विश्व शांति के प्रचारक हैं। साथ ही सामायिक योग ध्यान के माध्यम से लोगों के चित्त में शांति का संचार किया।
उन्होंने जैन धर्म के गूढ़ सिद्धांतों को सरल भाषा में जन-जन तक पहुंचाने के लिए अनेक प्रवचन और ग्रंथ रचे।
विभिन्न भाषाओं में उनकी गहरी पकड़ है, जिससे वे धर्म के संदेश को प्रभावी रूप से प्रसारित कर पाते हैं।
उन्होंने समाज में नैतिक मूल्यों को जाग्रत करने हेतु अनेक धार्मिक आयोजन किए।
संयम व्रत एवं साधना
पूज्य आचार्य श्री कठोर तपस्वी हैं। उनकी दिनचर्या में निम्नलिखित गहन तपस्याएँ शामिल हैं—
निर्वस्त्र जीवन (दिगंबरत्व का पालन)
केवल एक समय आहार ग्रहण करना
जल ग्रहण नियमों के अनुसार
केशलुंचन (हाथ से बाल उखाड़ना)
लगातार पदयात्रा (पैदल यात्रा)
सभी जीवों के प्रति अपार करुणा
राष्ट्रहित में योगदान
राष्ट्रसंत के रूप में उन्होंने समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने उनसे प्रेरणा प्राप्त की है। वे शिक्षा, नारी सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण और नैतिकता के उत्थान में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। उन्हीं की मंगल प्रेरणा से परम पूज्य श्वेतपिच्छाचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज की 100वीं जन्म जयंती के सुअवसर पे आचार्य विद्यानंद प्रज्ञपीठ की स्थापना दिल्ली में की गई। जिसमें असमर्थ प्रतिभावान बच्चों के लिए धार्मिक एवं लौकिक शिक्षा दी जाएगी।
आपकी ही प्रेरणा से दिल्ली रोहिणी में 250 बेड का भगवान महावीर सुपर स्पेशलिस्ट अस्पताल का भव्य शिलान्यास भारत के 14वें राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी से कराया।
पूज्य श्री ने भगवान महावीर स्वामी का विश्व स्तरीय पर 2550वाँ निर्वाण महोत्सव मनाया जिसमें भारत सरकार ने एक वर्ष तक अनेक कार्यक्रम किए जिसके अंतर्गत भारत सरकार ने एक चांदी का 100 रुपए का सिक्का एवं 5रुपए की स्मारक टिकट का लोकार्पण दिल्ली के भारत मंडपनम किया।
पूज्य आचार्य श्री प्रज्ञसागर जी मुनिराज अपने अद्वितीय व्यक्तित्व और आध्यात्मिक ऊर्जा के कारण समस्त विश्व में श्रद्धा और सम्मान के पात्र हैं। उनकी शिक्षाएं समाज को एक नई दिशा प्रदान कर रही हैं।
